शादी की रस्में जो है वो शुरू होती हैं तो पंडित जी जो है वो राही के माता-पिता को कन्या दन के रस्में निभाने के लिए बुलाते हैं और अनुपमा चाहती है कि यह रस्म जो है वह खुद करे लेकिन खुद को असहाय महसूस करती है और इस पर मोटी बा कहती है कि यह रस्म जो है वह हंसमुख और लीला को करनी चाहिए लेकिन राही जो है वह बीच में बोल जाती है
और कहती है कि अनुपमा ने जब अनुज की सारी जिम्मेदारी ली है तो उसे ही यह रस्म निभाने का पूरा हक है तो अनुपमा यहां पर राही को चुप रहने के लिए कहती है लेकिन राही जो है वह अपने फैसले पर अड़ी रहती है तो मोटी बा यह सुनकर नाखुश होती है
लेकिन प्रेम भी राही का साथ देता ता है तो लीला भी राही की बात से सहमति जताती है और कहती है कि कन्यादान करने का अधिकार जो है वह मां को ही होना चाहिए आखिरकार जो है वह सभी मान जाते हैं कि यह रस्म जो है वह अनुपमा ही निभाएगी इसी बीच प्रार्थना की ड्रेस जो है वह खराब हो जाती है और अंश जो है
वो प्रार्थना को घर में जाकर ड्रेस साफ करने के लिए कहता है लेकिन गौतम जो है यह सब देखकर गुस्से में आ जाता है और दूसरी तरफ अनुपमा जो है वह जानकी से कहती है कि मेहमानों के लिए खाना गर्म कर दे लेकिन जानकी उसे याद दिलाती है कि फिलहाल उसका ध्यान जो है वो शादी की रस्मों पर होना चाहिए इसके बाद यहां पर अनुपमा जो है वह घर में जरूरी काम के लिए आती है